क्या मांस खाना सही है। गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है |

क्या मांस खाना सही है? मांस मछली खाने के बारे में हमारे धर्म में क्या लिखा है? मांस खाने के बारे में विज्ञान क्या कहता है? तो आज हम इन टॉपिक पर चर्चा करेंगे।

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हमारे धर्म क्या कहेता है-मांस खाना पाप है या पुण्य

हमारे धर्म में, मांस खाना चाहिए, या नहीं खाना चाहिए। इस के बारे में क्या लिखा हुआ है। इसके बारे में कई लोगों का कहना है कि मांस खाना चाहिए और कई कहते कि मास नहीं खाना चाहिए, हमारे धर्म मे हमें मना किया गया है। पर सच क्या है। हम सच पे ही चलेंगे। तो आज हम, हमारे धर्म पुस्तक वेद का सहारा लेंगे और साथ ही साथ में हम भगवत गीता को भी उदाहरण के तौर पर लेगे।



ऋग्वेद मे क्या कहा गया है।

ऋग्वेद में साफ तौर पर मांसाहार करने से मना किया गया है। ऋग्वेद के मंडल 10 के एक श्लोक में मांसाहार करने से मना किया गया है और साथ में जो मांसाहार करता है। उसके साथ में क्या करना चाहीए वह भी कहा है। तो आइए श्लोक में क्या कहा गया है, वह देखते हैं।



९७५२. यः पौरुषेयेण क्रविषा समङ्क्ते यो अश्व्येन पशुना यातुधानः । यो अघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च ॥ १६ ॥

अर्थात- जो मनुष्य नर, अश्व अथवा किसी अन्य पशु का मांस सेवन कर उसको अपने शरीर का भाग बनाता है, गौ की हत्या कर अन्य जनों को दूध आदि से वंचित रखता है, हे अग्निस्वरूप राजा, अगर वह दुष्ट व्यक्ति किसी और प्रकार से न सुने तो ऑप उसका मस्तिष्क शरीर से विदारित करने के लिए संकोच मत कीजिए।

वेदों में तो साफ तौर पर मांसाहार करने से मना किया गया है। तो आइए भगवत गीता में क्या लिखा है। उसके बारे में जानते हैं।


भगवत गीता मे क्या कहा गया है। गीता में मांस के बारे में क्या लिखा है ?


भगवत गीता में श्री कृष्ण जी ने हमें 3 प्रकार के भोजन के बारे में बताया है। पहला सात्विक, दूसरा राजसिक और तीसरा तामसिक। तो आइए जानते हैं, इन भोजन के प्रकार के बारे में भगवत गीता में क्या कहा गया है।

अध्याय 17 श्लोक नंबर 8

आयुः सत्त्वबलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धनाः ।

रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ॥

अर्थ: आयु? सत्त्व (शुद्धि)? बल? आरोग्य? सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त? स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त] स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले भोज्य पदार्थ सात्त्विक मनुष्य को प्रिय होते हैं।


अध्याय 17 श्लोक नंबर 9

कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।

आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥

अर्थ: कड़वे, खट्टे, लवणयुक्त, बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, चिन्ता तथा रोगोंको उत्पन्न करनेवाले आहार अर्थात् भोजन करनेके पदार्थ राजस मनुष्यको प्रिय होते हैं।


अध्याय 17 श्लोक नंबर 10

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् । 

उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥

अर्थ: जो भोजन अधपका, रसरहित, दुगर्धयुक्त, बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र है, वह भोजन तामस मनुष्यको प्रिय होता है।


यहां पर भी आप देख सकते हैं की भगवत गीता में जो तामसिक भोजन की बात की गई है। वह तामसिक भोजन में मांस, मदिरा का भी समावेश होता है। जो दुर्गंध, अर्ध पक्का और अपवित्र माना जाता है।  अब रही बात विज्ञान की तो, आइए इस पर विज्ञान क्या कहता हे देखते हैं।


अर्जुन भगवान कृष्ण से अन्न के विषय में प्रश्न करते हैं और कहते हैं कि भोजन के निमित्त जो यज्ञ होते हैं, उन्हें कौन आदर्श हानि में यज्ञ करता है, जिन्होंने अपने अहंकार से भोजन का त्याग कर दिया है? उत्तर में, श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि अन्न तीन प्रकार का होता है - सात्त्विक, राजसिक और तामसिक। सात्त्विक अन्न, जैसे फल, सब्जियां और अनाज, बौद्धिक और शारीरिक ऊर्जा बढ़ाता है, जबकि राजसिक और तामसिक अन्न नुकसानदायक होते हैं।  


इसके अलावा, भगवद गीता में अहिंसा और धर्म के महत्व का भी बड़ा महत्व है। यह शिक्षा देती है कि हमें दूसरों के प्रति सम्मान रखना चाहिए और सभी प्राणियों की संरक्षा करनी चाहिए।

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गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप


गरुड़ पुराण में मांस खाने के संबंध में विभिन्न विचार व्यक्त किए गए हैं। इस पुराण के अनुसार, जीव जंतु के शरीर में आत्मा निवास करती है जो अमर होती है। इसलिए, जीव जंतु को मारकर उसका मांस खाना आत्मा का विरोध होता है।

गरुड़ पुराण में उल्लेख किया गया है कि मांस खाने से पाप उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति मांस खाते हैं, उन्हें नरक में जाना पड़ता है और उन्हें दुख भोगना पड़ता है।

इसलिए, गरुड़ पुराण के अनुसार, मांस खाना पाप है और उससे बचना चाहिए।





मांस पर विज्ञान क्या कहता है

विज्ञान के हिसाब से जो भी प्राणी मांस भक्षण के लिए बना होता है। उसके दांत नुकीले होते हैं और उसके नाखून तीक्ष्ण होते हैं। मांस पचाने के लिए मांसाहारी प्राणियों की आंत की साइज बहुत ही छोटी होती है। इसे हम मनुष्य के साथ जोड़ कर देखें तो हमारे सिर्फ चार ही दांत नुकीले होते हैं। हमारे नाखून भी दूसरे जानवरों की तरह तीक्ष्ण नहीं होते और मनुष्यों में छोटी आत वह बहुत ही लंबी होती है।

आप कहेंगे इसका और मांस खाने का क्या लेना देना। तो आइए समझाता हूं। मांस पचने में बहुत ही सरल होता है। वह बचने के लिए ज्यादा समय नहीं लेता। इसीलिए जानवरों की आंत छोटी होती है और हम मनुष्य की आंत बहुत ही लंबी होती है। जो मांस पचकर हमारी आंतो में जाता है और काफी समय तक छोटी आंत में पड़ा रहता है। जिसके कारण वह सडता है और कई प्रकार की बीमारियां होने की भी संभावना रहती है। विज्ञान की नजर से देखे तो हमारा शरीर मांस के लिए नहीं बनाही नही है।

हाली के समय में एक रिपोर्ट के अनुसार अगर मनुष्य मांस खाना बंद कर दे तो, यह जो कोरोना जैसे अनेकों रोग मनुष्य को होने से बचा जा सकता है। क्योंकि यह सब बीमारियां हम से पहले जानवरों में आती है और बाद में जानवरों से इंसान में आती हैं। अगर इंसान मांस भक्षण करना बंद कर दे तो यह बीमारियां आसानी से नहीं फेलेगी।

दूसरी बात शाकाहारी व्यक्ति की रोगप्रतिकारक शक्ति, मांसाहारी व्यक्ति से ज्यादा होती है और जो व्यक्ति मांसाहार का सेवन करते हैं, उनका स्वभाव आयुर्वेद के हिसाब से तामसिक होता है।


निष्कर्ष 

इस आर्टिकल में  हमने गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है,मांस खाना पाप है या पुण्य और गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप आदि विसयो क बारे में बताया और आपकी क्या राय  है इस चीज के  बारे में हमें कमेंट कर क बताये - धन्यवाद 


"जैसा होगा आपका आहार वैसा ही बनेगा आपका विहार।" (विहार= स्वभाव,व्यवहार)


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